क्यूँ???
(1)
देख कर ज़माने का चलन, मन में उमड़े है कई सवाल ना जाने क्यूँ !
सीरत कायम रहती है ता-उम्र, तो लोग बदलती सूरत के पीछे भागते है क्यूँ !
ना लगा पाया है कोई भी कीमत एक मुस्कान की,
फिर रस्मो रिवाजों के नाम पर इंसानों की कीमत आंकतें हैं क्यूँ!
जब कुदरत ने बेहिसाब बांटी हैं नियामतें!
तो दूसरे की थाली में झाँकतें हैं क्यूँ?
(1)
देख कर ज़माने का चलन, मन में उमड़े है कई सवाल ना जाने क्यूँ !
सीरत कायम रहती है ता-उम्र, तो लोग बदलती सूरत के पीछे भागते है क्यूँ !
ना लगा पाया है कोई भी कीमत एक मुस्कान की,
फिर रस्मो रिवाजों के नाम पर इंसानों की कीमत आंकतें हैं क्यूँ!
जब कुदरत ने बेहिसाब बांटी हैं नियामतें!
तो दूसरे की थाली में झाँकतें हैं क्यूँ?
(2)
रूहानियत के एहसास चमड़ी और दमड़ी से परे है
तो इन एहसासों को नामी ख़िताब देना जरुरी है क्यूँ !
गर सच में होती रिश्तों की मोहर ज़रूरी!
तो फिर राधा और मीरा के संग ही शाम बुलाये जाते है क्यूँ !
जो होती नियत नेक ना शबरी के इंतज़ार की
तो चुने हुए उसके झूठे बेर राम मजे से खाते क्यूँ !
रूहानियत के एहसास चमड़ी और दमड़ी से परे है
तो इन एहसासों को नामी ख़िताब देना जरुरी है क्यूँ !
गर सच में होती रिश्तों की मोहर ज़रूरी!
तो फिर राधा और मीरा के संग ही शाम बुलाये जाते है क्यूँ !
जो होती नियत नेक ना शबरी के इंतज़ार की
तो चुने हुए उसके झूठे बेर राम मजे से खाते क्यूँ !
(3)
प्यार में होता है सदा देना ही देना सोचना भी नहीं कुछ है लेना
तिजारत के तराजू में इसे फिर तोला जाता है क्यूँ !
कल जो ना खरा उतरा उम्मीदों पे,
प्यार में होता है सदा देना ही देना सोचना भी नहीं कुछ है लेना
तिजारत के तराजू में इसे फिर तोला जाता है क्यूँ !
कल जो ना खरा उतरा उम्मीदों पे,
आज
जो मांगे गम बिना उम्मीदों के
ऐसे सच्ची प्रीत पर शक का हक़ रखते है क्यूँ !
ना मुझे कोई उम्मीद है ना उसे कोई आस है
फिर ये अहसास सबसे खास लगता है क्यूँ !
बनाने के लिए मुझे आम से खास मेरे अक्स से कराई,
मेरी पहचान, दिया मुझे आकाश भरने के लिए उड़ान
जो मानू उसे अपना भगवान, तो पागल नादान मुझे कहता है क्यूँ !
(4)
ऐसे सच्ची प्रीत पर शक का हक़ रखते है क्यूँ !
ना मुझे कोई उम्मीद है ना उसे कोई आस है
फिर ये अहसास सबसे खास लगता है क्यूँ !
बनाने के लिए मुझे आम से खास मेरे अक्स से कराई,
मेरी पहचान, दिया मुझे आकाश भरने के लिए उड़ान
जो मानू उसे अपना भगवान, तो पागल नादान मुझे कहता है क्यूँ !
(4)
बहुत चालाक है वो मुरली वाला
जो सुनता सबकी अर्जी है पर करता अपनी मर्ज़ी है
जो एक भी पता हिले ना उसकी मर्ज़ी के बिना
फिर कर्मो की ये लीला रचाई ही क्यूँ !
बन राम शिला को अहिल्या बनाया
बन शाम ज़हर को अमृत बनाया
बहुत छलिया हो तुम जो ना करते ऐसे तो
कोई तुम्हे भगवन माने ही क्यूँ !
ये सच है के बंदा खुदा नहीं!
पर बन्दे में नूर खुदा का है
तो बंदा रब से जुदा है क्यूँ !
जो सुनता सबकी अर्जी है पर करता अपनी मर्ज़ी है
जो एक भी पता हिले ना उसकी मर्ज़ी के बिना
फिर कर्मो की ये लीला रचाई ही क्यूँ !
बन राम शिला को अहिल्या बनाया
बन शाम ज़हर को अमृत बनाया
बहुत छलिया हो तुम जो ना करते ऐसे तो
कोई तुम्हे भगवन माने ही क्यूँ !
ये सच है के बंदा खुदा नहीं!
पर बन्दे में नूर खुदा का है
तो बंदा रब से जुदा है क्यूँ !
बहुत अहम सवालों से भरी रचना.
ReplyDelete"जो एक भी पता हिले ना उसकी मर्ज़ी के बिना
फिर कर्मो की ये लीला रचाई ही क्यूँ !"
यह सनातन प्रश्न पुनः ताज़गी दे गया.
बाऊ जी,
Deleteनमस्ते !
बस आप अपना आशीष देते रहिये, तो ये छोटी सी पंछी लिखने की उडान भरती रहेगी
खूबसूरत एहसासों से भरी रचना ....
ReplyDeleteबधाई !
बाऊ जी,
Deleteनमस्ते !
बस आप अपना आशीष देते रहिये, तो ये छोटी सी पंछी लिखने की उडान भरती रहेगी
बहुत ही सार्थक सवाल उठाये है...
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना....
:-)
Thanks. Reenaji. kash koi jwab bhi aa jate.
ReplyDeleteपहले अपना फोटो लगा
ReplyDeleteचिंता मत कर कोई तेरे को कुछ नहीं बोलेगा
कोई बोलेगा तो में उसके दाँत तोड़ दूंगा !
बस आप अपना आशीष देते रहिये, तो ये छोटी सी पंछी लिखने की उडान भरती रहेगी
Deleteउडान भरती रहेगी पर मेरी नजर नहीं गयी थी !
सुशील जी
Deleteनमस्ते!
मेरे ब्लॉग पर आकर मेरे सवाल पढने का शुक्रिया!
दांत तोड़ने जैसा कोई सवाल ही नहीं है. ना ही किसी के डर से मैंने चेहरा सामने नहीं लाया. बस एक उड़ते पंछी के जैसे खुद को देखती हूँ.
अपनी पहचान वैसे ही मानती हूँ!
चलिये दाँत बच गये !
Deletevery nice ..:)
ReplyDeleteवाह:.सार्थक सवाल बहुत रोचक प्रस्तुति...!!
ReplyDeleteक्यूंकि हर क्यूं के जवाब नहीं होते, इसीलिये बहुत से सवाल अनुत्तरित रह जाते हैं|
ReplyDeleteसारे क्यूं आउटस्टैंडिंग|
ये सच है के बंदा खुदा नहीं!
ReplyDeleteपर बन्दे में नूर खुदा का है
तो बंदा रब से जुदा है क्यूँ !
बहुत सुदंर प्रश्न एवं सुंदर कविता की प्रस्तुति सराहनीय है। मेरे नए पोस्ट पर आकर मुझे प्रोत्साहित करने के लिए आपका विशेष आभार।
bahut sundar......
ReplyDeletekeep flying...keep writing....
god bless u
anu
Thanks ANU JI.
DeleteThanks ANU JI.
Deleteगर सच में होती रिश्तों की मोहर ज़रूरी!
ReplyDeleteतो फिर राधा और मीरा के संग ही शाम बुलाये जाते है क्यूँ !
जो होती नियत नेक ना शबरी के इंतज़ार की
तो चुने हुए उसके झूठे बेर राम मजे से खाते क्यूँ !
ये खूबसूरत भाव हैं...क्यूँ से परे...प्रश्नों की परिधि से बाहर|
ब्लॉगजगत में आपका स्वागत है|सदा लिखती रहें...शुभकामनाएँ!!
thanks for your wishes.
Deleteजब कुदरत ने बेहिसाब बांटी हैं नियामतें!
ReplyDeleteतो दूसरे की थाली में झाँकतें हैं क्यूँ? ..
क्योंकि उसी कुदरत ने झाँकने की आदत भी तो दी है ... अच्छे हैं सभी शेर ...