Thursday 20 June 2013

वो नौ दिन और अखियाँ चार, हुआ तेरह ओ सोहणे यार !!



जी करदा ए  तैनूं वेखीं जावा, तेरे विचों रब दिसदा !
 





















रब के सबब से आये वो भाग भरे नौ दिन
कुछ और न सुझा इन अखियों  को जब हो गई ये चार !
बन गया सच्चा सौदा तेरह, न कुछ बाकि मेरा
बस तू ही तू ओ सोहणे  यार !!


कुछ तो कमली थी मैं पहले से
और बाँवरी हुई पिया मिलन की ख़ुशी से !
तेरी महज़ एक नज़र से खिल उठती हूँ बारम्बार
दर दर न दुर दुर होना, सर झुकता है तेरे ही दरबार !!
मैं कहीं नहीं, बस तू ही तू ओ सोहणे यार !!

खूबसूरत नज़ारे न मुझ को भाए
जो तेरी नज़र से देखूं दुनिया
तो हर तरफ हरा भरा नज़र आए !
न पता था रास्ते और मंज़िल का
अब लगता है उन नौ दिनों में
अखियाँ चार और मंजिल एक कर आए !!

या कहो मंज़ूर ए खुदा  यहीं है
जानता  है खुदा  जाना है तुमको अब मीलों दूर
बनाया ऐसा सबब की ये हीर राँझा
नौ दिनों में नौ साल जी  जाए !!


माना कि सब कुछ न कर सकती हूँ तेरे लिए
पर जो कुछ भी कर सकूँ
क्यूँ छोडूं वो करना  मेरे लिए !
ये हीर तो बस राँझे के ही काबिल
बन सस्सी चलूँ गरम रेत पे
पहुँचाने तुझ को तेरे साहिल !

न कोई मौल है रूहानी यारी का
इस सौदे में यार को मिलने की खातिर !
सोहनी ने कच्चे घड़े से की तैराकी,
साहिबा हुई मिरज़े लई बागी 
मैंने अपनी हर साँस सौंप दी है तुम्हें
अब तेरी तू जाने न कुछ बाकि मेरा !
बस तू ही तू ओ सोहणे यार !!


बस चुके तो मुझ में तुम इस कदर
होने लगा है मुझे मेरे रूप का आभास !
जैसे की अब ये तो है अमानत तेरी
संभाल कर रखूँ इन अखियों को
जिन्होंने करना है बस यार का दीदार !!
बस तू ही तू ओ सोहणे यार !!

ये रूह से रूह के मिलने का एहसास है जो उठी ऐसे तरंग
हर रंग में घुल गया है बस एक दूजे का रंग !
न मीलों की दूरी, न कोई तांत्रिक मंतर कर पाए भंग
धूप हो या छाँव बन बंजारन घूमूं बंजारे संग !!
न जरुरत है शब्दों से कुछ कहने की
बिन बोले भी समझे प्यार की भाषा ये अखियाँ चार
बस तू ही तू ओ सोहणे यार !!

बस एक तमन्ना है मेरी, उम्र का चौथा दिन जब आए
तेरे मेरे प्यार के आशियाने में  हर दिन होली
और हर रात दिवाली हम मनाए !
नए नए पकवान बना मैं
 अपने हाथों से तुझे  खिलाऊँ !
छाज से भरा हुआ गिलास
आधा खुद पीऊँ और
 आधा तुम्हें पिलाऊँ !!
तुम्हारी लिखी कवितायों को
तुम्हारे ही चश्मे से पढ़ जाऊं !!
और क्या कहूँ, तू ही मेरा खुदा  तू ही मेरा संसार
अब तेरी तू जाने न कुछ बाकि मेरा !
बस तू ही तू ओ सोहणे यार !!





7 comments:

  1. वाह!!
    सोहना यार और उस पर लिखी ये रूहानी कविता.....
    उड़ते पंछी ने अपना घोसला बना लिया लगता है :-)

    अनु

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    1. हाँ अनु जी लगता तो ऐसा ही है।

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  2. अरे वो 'नौ' दिन कब आये गए......इसका कोई ब्योरा नहीं :-))
    प्रेम के रस से सराबोर पोस्ट।

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  3. मनोहारी भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  4. वाह ... दिल के छलकते ओरम में डूबी ... रूह की कलम से लिखी लाजवाब रचना ..

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  5. लाजवाब रचना .प्रेम के रस से सराबोर पोस्ट।

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  6. ये रूह से रूह के मिलने का एहसास है जो उठी ऐसे तरंग
    हर रंग में घुल गया है बस एक दूजे का रंग !
    न मीलों की दूरी, न कोई तांत्रिक मंतर कर पाए भंग
    धूप हो या छाँव बन बंजारन घूमूं बंजारे संग !!

    ....प्रेम से सराबोर लाज़वाब भावमयी रचना...बहुत सुन्दर..

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