Monday 25 November 2013

मैं हो गई तू



 
 
 
 
 
 
 
 
 


तू तू करदी तू हो गई
मुझ में रही ना मैं !
जब अपना आप गवाया
तो जाना मैं राँझे विच
राँझा मैं विच
मैं हो गई बस तू !!

तेरा एक वार दा दीदार
हज हो जान मेरे हज़ार !
न थकती ये निग़ाहें
भले देखूँ तुझे लख वार
इन अखियों में तुझे बसा के
मैं हो गई बस तू !!

मेरे यार जितना सोहना
कोई और नहीं होना !
इस कमली को उस सोहने ने
दिल में दिया बिछौना !!
तन मस्जिद पे जो ओढी
तेरी हरी चादर
मैं हो गई बस तू !!

ना मंदिर मस्जिद ना गिरज़ा गुरुदवारा
यार में दिखता सच्चे रब का नज़ारा !
ज़मीन से फ़लक तक चमके तेरा ही सितारा
बिन तेरे सजदे जीना एक पल भी न गवारा !!
जब खुदी मिटा के मेरे खुदा ने मुझे सवारा
तो मैं हो गई बस तू !!!


5 comments:

  1. जब इतना अच्छा लिखती हो तो .....
    कहाँ भरी उड़ान तूने और
    कहाँ हो गई थी तू उड़न छू .....
    शुभकामनायें !खुश रहो !

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  2. वाह ! वाह ! वाह !

    राँझा राँझा करते करते मैं आप। .............

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  3. प्रेम में बस तू ही तू होता है या रब होता है ...

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  4. प्रेम की गहराइयों में डूब के लिखी रचना ...

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