Friday 10 October 2014

करवा

ਸਾਡਾ ਵਖਰਾ ਕਰਵਾ
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
ना लगाई है हाथों पे मेहंदी , न किये सौलह श्रृंगार
ना सजाई है करवे की थाली, न गड़वे में गंगा की धार !
लोग कहते है मुझसे साजन, कैसा है तेरा करवे का त्यौहार !!


मैं कहती हूँ उनसे :-


हाथों की मेहंदी तो कुछ पलों को महके
मेरी रूह में समाई मेरे यार की ख़ुश्बू है !
किससे माँगू मैं पिया की लंबी उम्र की दुआ
जब खुद खुदा ही मेरे रूबरू है !!


इस करवे  पे मेरे ख़ुदा मुझे दुआ दे :


मुझे बनना तेरी हूर नहीं हुनर है
लाल नहीं, ओढ़ी धानी चुनर है !
रंग में तेरे रंग के बनना तेरा ग़रूर है
फिर एक दिन क्या हर दिन मेरा करवा
जो मैं नहीं बस तेरा ही छाया सरूर है !!
फिर भी 365 दिन में एक दिन का व्रत
माफ़ करना साबजी, हुआ मुझसे ये कसूर है !!!

2 comments:

  1. पूरा जीवन ही एक वृत होता है नारी का जीवन ...
    अच्छी रचना ...

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